स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान दें, वरना घट सकता है आपका रिटर्न; समझें पूरा गणित और बेवजह के खर्चों से बचें

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म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले निवेशकों के लिए स्विचिंग कॉस्ट पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह उनके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है। अक्सर निवेशक इस अहम पहलू को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे उनका अनावश्यक खर्च बढ़ जाता है। स्विचिंग का मतलब है, एक फंड से दूसरे फंड में निवेश को ट्रांसफर करना, जिसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं। म्युचुअल फंड में स्विच करने के अपने फायदे और नुकसान हैं। सही वित्तीय निर्णय लेने के लिए स्विचिंग कॉस्ट को समझना बेहद आवश्यक है।

म्युचुअल फंड में स्विचिंग क्या है?

म्युचुअल फंड में स्विचिंग का अर्थ है अपनी निवेश राशि को एक स्कीम से दूसरी स्कीम में ट्रांसफर करना। यह प्रक्रिया आंशिक या पूरी तरह हो सकती है और आमतौर पर एक ही फंड हाउस के अंदर की जाती है। अगर आप निवेश राशि को एक फंड हाउस से निकालकर किसी दूसरे फंड हाउस में लगाना चाहते हैं, तो इसे स्विच-इन और स्विच-आउट कहा जाता है।

इस प्रक्रिया में पहले मौजूदा फंड से निवेश रिडीम करना होता है और फिर दूसरे फंड में री-इन्वेस्ट करना पड़ता है। हालांकि, इसमें एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं, जो आपके रिटर्न को कम कर सकते हैं। इसलिए स्विचिंग करने से पहले इन खर्चों को समझना जरूरी है।

रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान में स्विचिंग का विकल्प

निवेशक म्युचुअल फंड में रेगुलर प्लान से डायरेक्ट प्लान में भी स्विच कर सकते हैं। रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर कमीशन शामिल होता है, जबकि डायरेक्ट प्लान में ऐसा नहीं होता। डायरेक्ट प्लान के जरिए निवेश की लागत कम होती है और बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना रहती है। हालांकि, डायरेक्ट प्लान में पोर्टफोलियो को खुद मैनेज करना होता है।


म्युचुअल फंड में स्विचिंग के फायदे

1. एसेट रीबैलेंसिंग

समय के साथ इक्विटी, डेट और नकद जैसे एसेट क्लास का प्रदर्शन बदलता रहता है। एसेट रीबैलेंसिंग के जरिए पोर्टफोलियो को वित्तीय लक्ष्यों और जोखिम सहनशीलता के अनुरूप बनाए रखा जा सकता है।

2. बाजार की परिस्थितियों का लाभ

स्विचिंग के जरिए बाजार की मौजूदा परिस्थितियों का फायदा उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि बाजार में गिरावट हो, तो इक्विटी फंड्स से डेट या लिक्विड फंड्स में शिफ्ट किया जा सकता है। वहीं, बाजार में तेजी के दौरान सुरक्षित फंड्स से इक्विटी-फोकस्ड फंड्स में स्विच करना रिटर्न को अधिकतम कर सकता है।

3. बदलते लक्ष्यों के अनुरूप निवेश

आपके वित्तीय लक्ष्यों में समय के साथ बदलाव हो सकता है। रिटायरमेंट के करीब आने पर, आप ग्रोथ की जगह पूंजी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए इक्विटी से डेट फंड्स में स्विच कर सकते हैं। वहीं, अगर संपत्ति तेजी से बढ़ाने का लक्ष्य हो, तो इक्विटी फंड्स में स्विच करना बेहतर हो सकता है।

4. लोअर-कॉस्ट विकल्प चुनना

डिस्ट्रीब्यूटर के जरिए रेगुलर फंड्स में निवेश करने वाले निवेशक डायरेक्ट प्लान में स्विच कर सकते हैं। डायरेक्ट प्लान में कमीशन नहीं होता, जिससे रिटर्न बेहतर होता है।


स्विचिंग के दौरान इन बातों का रखें ध्यान

आनंद राठी वेल्थ की म्युचुअल फंड एनालिस्ट नबनीता दत्ता के अनुसार, स्विचिंग का निर्णय लेने से पहले इसकी वजह स्पष्ट होना जरूरी है, जैसे पोर्टफोलियो रीबैलेंस करना, लक्ष्य के अनुरूप बदलाव करना, या बेहतर रिटर्न पाना।

स्विचिंग में एग्जिट लोड और कैपिटल गेन टैक्स जैसे खर्च शामिल होते हैं। यदि आपने इक्विटी फंड्स में एक साल से कम समय तक निवेश किया है, तो एग्जिट लोड 0-2% तक हो सकता है। वहीं, शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन पर 15% और लॉन्ग-टर्म गेन पर 10% टैक्स लग सकता है।

इसलिए, स्विचिंग से पहले इसके खर्च और प्रभाव को समझकर ही कोई निर्णय लें ताकि अनावश्यक वित्तीय नुकसान से बचा जा सके।

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