बाल ठाकरे के चुनाव लड़ने पर बैन क्यों लगाया गया था? उनके नाम को वोटर लिस्ट से भी क्यों हटाया गया?

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महाराष्ट्र की सियासत में बालासाहेब ठाकरे का नाम पिछले छह-सात दशकों से अनवरत गूंजता रहा है। उनका निधन हुए 13 साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन उनके विचार और व्यक्तित्व आज भी सियासी चर्चा का हिस्सा हैं। 23 जनवरी 1926 को जन्मे बाल केशव ठाकरे, जिन्हें सम्मान से बालासाहेब ठाकरे कहा जाता था, ने अपनी पहचान एक प्रभावशाली नेता और शिवसेना के संस्थापक के रूप में बनाई। करियर की शुरुआत में कार्टूनिस्ट रहे बाल ठाकरे ने मराठी मानुष और हिंदुत्व के हितों को सशक्त मंच दिया। उन्होंने राजनीति में गरिमा और दमखम के साथ कदम रखा, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब उनके चुनाव लड़ने और मतदान करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।


जब बाल ठाकरे के चुनाव लड़ने पर बैन लगा

जुलाई 1999 में, चुनाव आयोग की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने बाल ठाकरे के चुनाव लड़ने पर 6 साल का प्रतिबंध लगाया।

  • बाल ठाकरे पर 1987 के महाराष्ट्र विधानसभा उपचुनावों में विले पार्ले सीट पर दिए गए भड़काऊ भाषण के आरोप थे।
  • उन्होंने शिवसेना उम्मीदवार यशवंत रमेश प्रभु के समर्थन में धर्म के नाम पर वोट मांगने की अपील की थी।
  • जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123(3) के तहत धर्म, जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर वोट मांगना प्रतिबंधित और दंडनीय है।
    चुनाव आयोग ने इस मामले में कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजी, जिसके बाद बाल ठाकरे पर यह प्रतिबंध लगा।

क्या कहा था बालासाहेब ठाकरे ने?

बालासाहेब ठाकरे पर आरोप था कि उन्होंने अपने भाषण में:

  1. मुस्लिम समुदाय का जिक्र करते हुए हिंदू मतदाताओं से शिवसेना उम्मीदवार को वोट देने की अपील की।
  2. कहा था, “अगर रमेश प्रभु जीतते हैं, तो यह केवल शिवसेना या बाल ठाकरे की नहीं, बल्कि हिंदू धर्म की जीत होगी।”
  3. यह भी कहा था, “जो मस्जिदें हैं, अगर उन्हें खोदा जाए तो वहां हिंदू मंदिर मिलेंगे।”
  4. अपने बयान में उन्होंने रमेश प्रभु के नाम का जिक्र करते हुए कहा, “जिसके नाम में ही प्रभु है, उसे धर्म के नाम पर चुनाव जीताकर विधानसभा में भेजा जाना चाहिए।”

कांग्रेस प्रत्याशी ने कोर्ट का रुख किया

बाल ठाकरे के भाषण के बाद, कांग्रेस प्रत्याशी कुंते ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की।

  • उन्होंने जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 123(3) के तहत ठाकरे और रमेश प्रभु पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज कराया।
  • 1989 में, हाई कोर्ट ने रमेश प्रभु की चुनावी जीत को अवैध करार दिया और 1991 में दिए गए फैसले में उनकी जीत को रद्द कर दिया।
  • कोर्ट ने रमेश प्रभु पर 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध भी लगा दिया।

मामला सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग तक पहुंचा

हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए रमेश प्रभु सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन उन्हें वहां से भी कोई राहत नहीं मिली।

  • सुप्रीम कोर्ट ने बाल ठाकरे को भड़काऊ भाषण देने का दोषी ठहराया।
  • हालांकि, चूंकि ठाकरे किसी सार्वजनिक पद पर नहीं थे, सुप्रीम कोर्ट ने सजा तय करने का अधिकार चुनाव आयोग को दिया।

चुनाव आयोग ने 1998 में एक समिति बनाई, जिसने राष्ट्रपति को सिफारिश की कि बाल ठाकरे को मतदान और चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित किया जाए।

  • राष्ट्रपति ने इस सिफारिश को मंजूरी दी, जिसके बाद बाल ठाकरे पर 6 साल के लिए चुनाव लड़ने और मतदान करने पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • उनका नाम वोटर लिस्ट से भी हटा दिया गया।

बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत

भले ही बाल ठाकरे को चुनाव लड़ने और मतदान से वंचित किया गया, लेकिन यह घटनाएं उनकी राजनीतिक लोकप्रियता को कम नहीं कर सकीं। उन्होंने मराठी मानुष और हिंदुत्व की भावना को जो पहचान दी, वह आज भी शिवसेना और महाराष्ट्र की राजनीति का अहम हिस्सा है। उनका व्यक्तित्व और विचारधारा न केवल उनके समर्थकों के लिए प्रेरणा है, बल्कि राजनीतिक इतिहास में एक अमिट छाप भी छोड़ गए।

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