जिसमें मनुष्यता अर्थात सत्य, दया अहिंसा का भाव हो वही धर्म है – श्री अनिरुद्धाचार्य

रायपुर. श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराजश्री की अवधपुरी मैदान गुढ़ियारी में स्व. श्री सत्यनारायण बाजारी (मन्नू भाई) की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस महाराजश्री द्वारा प्रभू गौरी-गोपाल जी को पुष्प माला अर्पित कर आरती से की गई जिसमें कृष्णा बाजारी परिवार एवम् आयोजन समिति के कुछ प्रमुख पदाधिकारीगण शामिल हुए.
तारा है सारा जमाना, नाथ हमको भी तारो…! संगीतमयी, सुमधुर भजन में हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुगण झूमते-नाचते रहे.
महाराजश्री ने श्रवण कुमार का स्मरण करते हुए कहा कि उसने पैदल ही अपने वृद्ध माता-पिता को चारों धाम की यात्रा कांवर में बिठा कर करवा दी आप लोग कार से ही अपने-2 माता पिता को चारों धाम की यात्रा करवा कर पुण्य लाभ के भागी बनें.
महाराजश्री श्रोताओं से पूछा-धर्म क्या है? फिर इसे विस्तार से समझाते हुए बताया कि जिसमें मनुष्यता अर्थात सत्य, दया अहिंसा का भाव हो वही धर्म है. रावण में मनुष्यता का अभाव था, राम मनुष्य थे. सनातन धर्म हिंसा, बलि प्रथा का समर्थन नहीं करता. दूसरे धर्मों में त्यौहारों में बकरे काटे जाते हैं, हमारी संस्कृति हत्या ना करने की सीख देती है. सनातन धर्म ही पूरी दुनिया को परिवार मानता है.
महाराजश्री ने कहा कि बुरा नहीं सुनना चाहिये अन्यथा हश्र बुरा ही होता है. रावण ने बुराई सुनी सूर्फनखा से, कैकेयी ने मंथरा से, दुर्योधन ने शकुनि से जिनका हश्र बुरा ही हुआ.
महाराजश्री ने बताया कि भगवान निराकार हैं परंतु वे साकार रुप में भी प्रकट होते हैं. पानी निराकार है परंतु बर्फ का आकार है.
महाराजश्री ने पूछा-महाभारत क्यों हुआ? फिर उन्होंने विस्तार से बताया कि बच्चों के बीच सम्पति का सही बंटवारा नहीं होने के कारण महाभारत हुआ. अत: माता-पिता को अपने जीते-जी संतानों के मध्य सम्पत्ति का सही बंटवारा कर देना चाहिये. 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद भी पाण्डवों को उनका अधिकार नहीं मिला.पाण्डव तो सिर्फ पांच गांव ही मांग रहे थे पर वह भी उन्हें नहीं मिला. उन्होंने कहा कि विपत्ति में सिर्फ प्रभु ही काम आते हैं. द्रौपदी ने जब देखा भरी सभा में चीर-हरण में कोई उनका साथ नहीं दे रहा है तब वे प्रभु श्री कृष्ण का स्मरण कीं और वे ही उनकी लाज बचाये. महाराजश्री ने कहा कि गांधारी ने 99 पुत्रों की हत्या के बाद दुर्योधन के लिये अपनी आंखों की पट्टी को खोला यदि वे द्रौपदी के चीर-हरण के समय ही अपनी पट्टी खोल लेतीं और गलत को रोकतीं तो भी महाभारत नहीं होता. महाराजश्री ने कहा कि भीष्म पितामह की चुप्पी भी महाभारत का कारण बनीं. चीरहरण के समय अगर वे दुस्शासन को दो तमाता मार देते, उस पर क्रोध करते तो भी महाभारत नहीं होता. गलत को गलत और सही को सही बोलो, अगर सह उलटा हो गया तो महाभारत होगा. महाभारत का युद्ध 18 दिन चला एवम् 52 दिनों तक भीष्म पितामह बांणों की शैय्या पर लेटे रहे. श्री कृष्ण जब उनसे मिलने गये तब वे अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिये.
महाराजश्री ने जुआं, शराब, मांसाहार, चरित्रहीनता, लोभ से दूर रहने का संकल्प श्रद्धालुओं को दिलवाया.
महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति के अंदर एक स्त्री होती है, वह बुद्धि है, उसे श्री कृष्ण को अर्पित कर दें. आपके जीवन को प्रभु संवार देंगे.
कथा के बीच में-ओ माँ तू कितनी प्यारी है….! तेरी ऊंगली पकड़के चला… माँ… मैं तेरा लाड़ला…!! आदि संगीतमयी गीतों से सभी भाव-विभोर हो गये. कथा का अंत गौरी-गोपाल जी की आरती से हुआ. कार्यक्रम व्यवस्था में ओमप्रकाश मिश्रा, ओमकार बैस, ओमप्रकाश बाजारी, नितिन कुमार झा, विकास सेठिया, सुनील बाजारी, सौरभ मिश्रा,दीपक अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल सहित सैकड़ों पदाधिकारी एवम् कार्यकर्ता सक्रिय रहे. उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी नितिन कुमार झा ने दी.

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