Shabari Jayanti 2025: आज शबरी जयंती पर पढ़ें व्रत की पूरी कथा, जानिए कौन थीं श्रीराम के लिए फल लाने वाली माता शबरी

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Shabari Jayanti 2025: हिंदू धर्म में कई तीज-त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक है शबरी जयंती. पंचांग के अनुसार, शबरी जयंती हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है. ऐसे में इस साल 20 फरवरी, गुरुवार के दिन शबरी जयंती मनाई जा रही है. इस दिन भक्त माता शबरी और श्रीराम की पूजा संपन्न करते हैं. माता शबरी के बारे में यह तो सभी जानते हैं कि उन्होंने श्रीराम को अपने झूठे फल खिलाए थे, लेकिन वे कौन थीं और उस वन में कैसे पहुंचीं इसकी कहानी कम ही लोगों को पता है. ऐसे में यहां जानिए शबरी जयंती की पूरी कथा. व्रत रखने वाले भक्तों को इस कथा को जरूर पढ़ना चाहिए. मान्यतानुसार व्रत को पूरा माना जाता है.

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शबरी जयंती की कथा  

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शबरी का जन्म भील समुदाय की शबर जाति में हुआ था और उनकी माता का नाम इन्दुमति था. शबरी के पिता का नाम अज था और वे भील समुदाय के प्रमुख थे. शबरी को बचपन में श्रमणा कहकर पुकारा जाता था परंतु आगे चलकर उन्हें अपनी शबर जाति से जाना गया इसलिए शबरी नाम पड़ गया.

शबरी बड़ी हुईं तो उनका विवाह कराने की बात चलने लगी. शबरी के विवाह के लिए ढेर सारे पशु और पक्षी कबीले में लाए गए. जब शबरी ने इन पशु-पक्षियों के वहां होने की वजह पूछी तो उन्हें बताया गया कि इन्हीं से विवाह का भोजन तैयार किया जाएगा. यह सुनकर शबरी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने निश्चय किया कि वे विवाह नहीं करेंगी. शबरी ने रात के समय चुपके से किवाड़ खोलकर सभी पशु और पक्षियों को वहां से रिहा कर दिया. ऐसा करते हुए उन्हें किसी ने देख लिया जिससे भयभीत होकर वे वहां से भाग गईं और ऋष्यमूक पर्वत चली गईं जहां अनेक ऋषिगण निवास करते थे.

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ऋषियों की कुटिया में झाड़ू लगाने और लकड़ियां चुनकर लाने का काम शबरी ने ले लिया. ऋषिगणों ने शबरी से उनका परिचय मांगा और उनमें से ही एक मातंग ऋषि ने शबरी को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया. मातंग ऋषि ने शबरी को श्रीराम के विषय में बताया और कहा कि वे उनकी प्रतीक्षा करें, एक दिन श्रीराम यहां आएंगे.

माता शबरी ने अपने गुरु के वचन का पालन किया और सम्पूर्ण जीवन श्रीराम की राह देखते निकाल दिया. वे मार्ग में श्रीराम की प्रतीक्षा किया करती थीं. शबरी मीठे फल चखकर लाया करती थीं और मार्ग में बैठा करती थीं. अपने वनवास के दौरान श्रीराम को जब शबरी की तपस्या ज्ञात हुई तो वे उससे खुश होकर शबरी से मिलने पहुंचे. यहीं शबरी ने श्रीराम और अनुज लक्ष्मण को बेर खाने के लिए दिए. श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाकर उसका उद्धार किया.

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