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भाजपा में नेता प्रतिपक्ष के चयन का इतिहास खौफनाक है – कांग्रेस

 

रायपुर/ प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष के बाद भाजपा में नेता प्रतिपक्ष के बदले जाने की खबरों से साफ हो गया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा कांग्रेस की मजबूती और कांग्रेस सरकार के कामों से घबरा गयी है। इसी घबराहट में उसे विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष मो बदल दिया, अब नेता प्रतिपक्ष को बदलने की कवायद शुरू हो गयी है। छत्तीसगढ़ को लेकर भाजपा नेतृत्व दुविधा का शिकार है। उसे समझ नहीं आ रहा कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का मुकाबला कैसे किया जाये इसीलिये वह अपने नेतृत्व में परिवर्तन का प्रयोग बार-बार कर रही है। पौने चार साल में भाजपा ने अपने चार अध्यक्ष बदल डाले। भाजपा इतनी घबराई हुई है कि छत्तीसगढ़ में सांगठनिक गतिविधियों को चलाने स्वयं अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के आने का कार्यक्रम बना है, बताते है दोनों नेता भाजपा की बूथ और मंडल की बैठक लेंगे यह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मजबूती को बताने के लिये पर्याप्त है।

प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष चयन में भाजपा का इतिहास खौफनाक है। राज्य निर्माण के वक्त नेता प्रतिपक्ष चुने आए प्रभारी नरेंद्र मोदी को टेबल के नीचे छिप कर अपने जान को भाजपा के गुंडों से बचाना पड़ा था। आज 2020 में भाजपा उसी मुकाम पर खड़ी हुई है। भाजपा के 14 विधायक में 14 के 14 नेता प्रतिपक्ष के दावेदार हैं। एक अनार सौ बीमार वाली कहावत भाजपा में है रमन सिंह गुट, बृजमोहन अग्रवाल गुट, अजय चंद्राकर गुट, शिवरतन शर्मा गुट के साथ सबके अपनी डफली अपना राग है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष चयन के दौरान राज्य निर्माण के बाद की घटना की पुनरावृति हो जाए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कद और सरकार के जन कल्याण नीतियों के आगे भाजपा मुद्दाविहीन और बेबस हो चुकी है। भाजपा को लगता है क्यों प्रदेश अध्यक्ष को बदलकर या नेता प्रतिपक्ष को बदलकर जनता को भरमाने में कामयाब हो जाएगी तो जितना जल्दी हो सके अपने इस आभासी दुनिया से बाहर आकर जनहित के मुद्दों में जनता के साथ खड़े होना सीखना चाहिए। भाजपा से जुड़े छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों को भी ध्यान को रखना चाहिए कि उन्हें छत्तीसगढ़ के हित के साथ कभी समझौता नहीं करना चाहिए और छत्तीसगढ़ के अहित करने वाली केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोलना चाहिए अपने प्रभारियों के दबाव में कहीं ना कहीं छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र छत्तीसगढ़िया बेटा भी अपना दायित्व को या तो खुलकर बोल नहीं पा रहा है या तो उन्हें बोलने से रोका जा रहा है।

 

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