माँ ने साँझ का चूल्हा जलाया ही था कि घर के छान्ही ( खपरैल) के छत से निकलते हुए धुएं को देख कर पड़ोस की चाची, दादी, भाभी लोगो का आना शुरू हो गया। आना शुरू हो गया क्योंकि उस समय गावों में खाना बनाने के लिए घरेलु ईंधन गोबर का कंडा और लकड़ी का उपयोग किया जाता था …
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निंदक नही हितैषी है – लेखक बलवंत सिंह खन्ना
मुझे लिखने का बहुत शौक है। मेरे ज्यादातर लेख मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होते हैं और उन लेखों के माध्यम से मेरा प्रयास रहता है कि हर पाठक के अन्दर एक सकारात्मक सोच जगा सकूँ । यूँ तो 33 वर्ष के जीवन में अनेक क्षेत्रों में कार्य किया, पढ़ाई किया, जिसमें रूचि रही वही कार्य किया। आज भी यह …
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