मुझे लिखने का बहुत शौक है। मेरे ज्यादातर लेख मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होते हैं और उन लेखों के माध्यम से मेरा प्रयास रहता है कि हर पाठक के अन्दर एक सकारात्मक सोच जगा सकूँ । यूँ तो 33 वर्ष के जीवन में अनेक क्षेत्रों में कार्य किया, पढ़ाई किया, जिसमें रूचि रही वही कार्य किया। आज भी यह सिलसिला जारी है और इन्ही सब से प्राप्त अनुभव को मैं अपनी लेखनी में स्थान देता हूं लेकिन यह बात भी सही है कि मैं कोई महान लेखक होने का दम्भ नहीं भरता हूँ और न ही मैं कोई महान लेखक हूं, लिखने का छोटा सा प्रयास जरूर करता
हूं। शब्दों की वर्तनी में अक्सर गलतियां हो जाती हैं
प्रति विशेष आदर व सम्मान का भाव हृदय की गहराईयों गुड़ में से मक्खी निकालने का कार्य बखूबी कर लेते हैं। तक व्याप्त होने के कारण भी लेखन कार्य में भी हाँ ये मेरे मित्र ही हैं जो वास्तव में मेरे सच्चे मित्र हैं। मैं व्याकरण की अशुद्धियां प्रायः पुरलिंग के स्थान पर मानता हूँ हर इंसान को अपने जीवन में ऐसे मित्र जरूर | स्त्रीलिंग का प्रयोग अभ्यास का हिस्सा बन गया। बनाने चाहिए जो गुड़ में बैठी मक्खी को ढूंढ कर संभवत: यही वजह होगी कि बचपन से ही मैं स्त्री लिंग निकाल फेंके और ठीक ऐसे ही हमारी गलतियों को ढूंढ वाले शब्दों के प्रति आकर्षित रहा हूँ। स्त्री से तातपर्य हर कर सुधारने में हमारी मदद कर सकें। अक्सर सुनते हैं वह इंसान जो मेरे जीवन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कि किसी का दोस्त ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन होता
मेरी सम्मानित शिक्षिकाएं, बाद में मेरी महिला मित्र एवं कहते हैं की अगर हमारी किसी गलती को देखकर सबसे अहम् मेरी धर्मपत्नी आदि। एक स्त्री के रूप में समझकर भी यदि हमारा कोई दोस्त अनदेखा कर दे, उन सभी का मैं सम्मान हृदय से करता हूँ। मेरे जीवन में उसके बारे में अवगत न कराये, गलती को दिखाते हुए इन सभी की उपस्थिति से मैं स्वयं में पूर्णता का भाव उसके सुधार के लिए साथ न दे बल्कि उल्टा गलती के महसूस करता हूँ। यही कारण है कि कई बार आता है बाद भी तारीफ करे, तो वह सही मायने में दुश्मन ही है, को आती है, होता है को होती है, का के जगह की या वह दोस्त नहीं हो सकता। वास्तविक दोस्त तो वह है जो
ऐसी शिकायतें मेरे शिक्षकों व प्राध्यापकों को भी हमेशा रही हैं एवं उनकी टिपणी भी होती थी कि बलवंत, लिखा अच्छा है बस कहीं कहीं वर्तनी कि का उपयोग कर डालता हूँ। लेकिन मैंने कभी भी (मात्राओं) की त्रुटियां हैं। मैं इस तथ्य को स्वीकार अपनी गलतियों को अस्वीकार नहीं किया है चाहे वह करता हूं और मैं स्वयं विष्लेशण करने पर पाता हूं कि लेखनी में हो या जीवन में हो या फिर कार्यस्थल पर हो संभवत: बचपन में पढ़ाई के दौरान व्याकरण को शायद जो मुझसे गलती हो वह मुझे स्वीकार्य है। इन सब के मैंने गंभीरता से नहीं लिया दूसरी तरफ महिलाओं के अलावा मैंने जीवन में कुछ ऐसे भी दोस्त बनाये हैं जो जुड़ा रहा, जैसे जन्म देनेवाली मेरी मां, बचपन में जिनके है। साथ खेले कूदे, स्कूल गए, मेरी दीदी बहन, रिश्तों में मेरी नानी, मौसी, बुआ, दादी, जिनके बीच में रहकर बचपन बीता, स्कूल व कॉलेज में अध्यापन कराने वाली अगर सुने हैं तो क्या है इसके पीछे की सच्चाई,
क्या आपने भी सुना है।
हमें हमारी गलतियों का एहसास दिलाए न की गलतियों पर भी तारीफ करें।
कबीर जी भी कहते हैं कि निंदक नियरे राखिए ऑगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय
अर्थात हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने आस-पास अवश्य रखना चाहिये। निंदक हमारे चरित्र की दुर्बलता को उजागर करता है जिससे हम अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं। निंदक व्यक्ति बिना साबुन और बिना पानी के हमारे चरित्र और स्वभाव को निर्मल कर देता है। कहते हैं चरित्र और व्यक्तिगत दुर्बलता व विकार तभी दूर होंगे, जब कोई हमें परखे. हमारा विश्लेष्ण करे। यह कार्य निंदक से बेहतर और कोई नहीं कर सकता, क्योंकि वह हमारी कमियां ही ढूंढने में लगा रहता है। मुझे खुशी है कि ऐसे मित्र मेरे जीवन में भी हैं जो व्यवहारिक जीवन के साथ ही मेरे लेखनी में वर्तनी की त्रुटियों से भी अवगत कराते हैं।
इसलिए निंदक को समीप रखना चाहिए जो हमारे अवगुणों को चिन्हित कर हमें उसके बारे में बताता है, अन्यथा हम स्वंय का विश्लेषण नहीं कर पाते हैं। यह मानव का मूल स्वभाव है कि वह दूसरों की कमियों को तो देख सकता है लेकिन स्वंय के द्वारा किये गए अच्छे, बुरे प्रत्येक कार्य की पैरवी करता है। हमारा अहम् हमें हमारे दुर्गुणों को देखने नहीं देता है। कबीर साहेब की वाणी है कि जैसे आँगन में कुटिया (झोपडी) के सामने हमें ठंडी छाव के लिए एक वृक्ष तैयार करना चाहिए, उसी भांति हमें हमारे समीप निंदक को भी रखना चाहिए। क्योंकि वह बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को निर्मल और दोषमुक्त कर देता है अर्थात् उसके छिद्रान्वेषी स्वभाव के कारण निरंतर हमारे स्वभाव, चरित्र, कार्य और लेखनी में निखार आता है। मैं ऐसे निंदकों या यूं कहें कि ऐसे सच्चे हितैषी मित्रों का दिल