आंगनबाड़ी अधिकार महापड़ाव में हजारों की हिस्सेदारी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग

 

नई दिल्ली। अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता-सहायिका महासंघ (सीटू) के आह्वान पर आंगनबाड़ी से जुड़ी देश भर से आई हजारों महिलाओं का 26 जुलाई से महापड़ाव जारी है। यह महापड़ाव कल 29 जुलाई को भी जारी रहेगा। यह महापड़ाव केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों और आंगनबाड़ी के निजीकरण की कोशिशों के खिलाफ तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने की मांग पर आयोजित है।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि देश भर की 27 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को नियमित कर्मचारी माना जाए तथा उन्हें पेंशन और भविष्य निधि की सुरक्षा दी जाए। सीटू का आरोप है कि मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं है और इसलिए वे सड़कों पर संघर्ष करने के लिए बाध्य है।

सीटू से जुड़ी आंगनबाड़ी यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र झा पैसों की कमी के केंद्र सरकार की दलील को खारिज करते हैं। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि जो सरकार अडानी-अंबानी जैसे कॉरपोरेटों को करों में लाखों करोड़ रुपयों की छूट दे रही हो और उनके द्वारा लिए गए कर्ज़ को बट्टे खाते में डालकर माफ कर रही हो, उस सरकार का पैसों की कमी का बहाना बनाना शर्म की बात है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए और आंगनबाड़ी की बहनों को सरकारी कर्मचारी मानते हुए उन्हें नियमित कर्मचारियों की तरह सुविधाएं देनी चाहिए।

इस चार दिनी महापड़ाव के लिए सीटू को प्रशासन द्वारा बड़ी मुश्किल से अनुमति मिली है और उन्हें महापड़ाव के लिए मात्र 100 वर्ग मीटर की जमीन आबंटित की गई है। इस कारण अलग-अलग दिनों में अलग-अलग राज्यों से आई कार्यकर्ता और सहायिकाएं इस पड़ाव में हिस्सा ले रही है। धरना स्थल की सरकारी हदबंदी को तोड़ते हुए हजारों की संख्या में हिस्सा ले रही हैं और इन चार दिनों में एक लाख से अधिक आंगनबाड़ी बहनों की हिस्सेदारी का अनुमान लगाया जा रहा है।

इस महापड़ाव को सीटू के राष्ट्रीय महासचिव, पूर्व सांसद तपन सेन, आंगनबाड़ी यूनियनों के महासंघ की राष्ट्रीय महासचिव ए आर सिंधु सहित विभिन्न प्रदेशों की आंगनबाड़ी यूनियनों के नेता संबोधित कर रहे हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी न मानना मोदी सरकार की तानाशाही और मजदूर विरोधी रवैये का ही प्रतीक है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी आम जनता के नहीं, बल्कि केवल कॉरपोरेटों के सेवक है, जो उनकी तिजोरियां भरने के लिए देश को भी बेचने को आमादा है। लेकिन इस देश के मेहनतकश मजदूरों को गुलाम और बंधुआ बनाने वाली इन नीतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।

सीटू नेता गजेंद्र झा ने बताया कि इस महापड़ाव में छत्तीसगढ़ से सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं भाग ले रही है। आने वाले दिनों में राज्यों के अंदर भी इस मांग पर आंदोलन तेज किया जाएगा। इसके लिए जुझारू कल्याण संघ और अन्य सभी यूनियनों के साथ मिलकर साझा मोर्चा बनाया जाएगा।

 

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