आज से देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता। ये नए कानून 1860 की भारतीय दंड संहिता, 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता, और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
इन नए कानूनों को लागू करने से पहले संसद के दोनों सदनों में मात्र पांच घंटे की बहस की गई थी, जब विपक्ष के 140 से अधिक सांसद निलंबित कर दिए गए थे। विपक्ष और कानून के जानकारों ने उस समय कहा था कि देश की न्याय व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाले इन कानूनों पर संसद में व्यापक बहस होनी चाहिए थी।
हालांकि, कई गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने इन नए कानूनों का विरोध किया है। केंद्र सरकार के अधिकारियों ने रविवार को कहा कि राज्य सरकारें भारतीय सुरक्षा संहिता में अपनी ओर से संशोधन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
नए कानूनों में शामिल किए गए महत्वपूर्ण अपराध:
- शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल तक की जेल।
- नस्ल, जाति-समुदाय, लिंग के आधार पर मॉब लिंचिंग के मामलों में आजीवन कारावास की सज़ा।
- छिनैती के लिए तीन साल तक की जेल।
- यूएपीए जैसे आतंकवाद-रोधी कानूनों को भी इनमें शामिल किया गया है।
एक जुलाई की रात 12 बजे से देश भर के 650 से ज़्यादा ज़िला न्यायालयों और 16,000 पुलिस थानों में ये नई व्यवस्था लागू हो गई है। अब से संज्ञेय अपराधों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 154 के बजाय भारतीय न्याय संहिता (बीएनएसएस) की धारा 173 के तहत दर्ज किया जाएगा।
इन नए कानूनों का मुख्य उद्देश्य न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी और समसामयिक बनाना है, जिससे अपराधियों को कठोर सजा मिल सके और न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया तेज हो सके।
देश में तीन नए आपराधिक कानूनों का लागू होना एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न्याय व्यवस्था में व्यापक बदलाव लाएगा। हालांकि, इन कानूनों पर संसद में पूरी बहस न होने और कुछ राज्यों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद, इनका उद्देश्य अपराधियों को कठोर सजा देना और न्याय प्रणाली को प्रभावी बनाना है। राज्य सरकारों को भी इन कानूनों में आवश्यक संशोधन करने की स्वतंत्रता दी गई है, जिससे सभी राज्यों में न्याय प्रणाली सुचारु रूप से काम कर सके