आज के डिजिटल युग में, बच्चों का अधिकांश समय स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स, और कंप्यूटर स्क्रीन पर बीतता है। ये उपकरण बच्चों की शिक्षा और मनोरंजन का मुख्य साधन बन गए हैं, लेकिन इनसे निकलने वाली ब्लू लाइट उनके आँखों पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। प्रमुख नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक मेहरा के अनुसार, ब्लू लाइट उच्च ऊर्जा वाली, छोटी तरंगदैर्ध्य वाली लाइट होती है जो डिजिटल स्क्रीन से उत्सर्जित होती है।
जब बच्चे लंबे समय तक इन स्क्रीन के संपर्क में रहते हैं, तो उनकी आँखों में थकावट, सूखापन, और दृष्टि में तनाव उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, ब्लू लाइट का प्रभाव बच्चों की नींद पर भी पड़ सकता है, जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा आ सकती है। ब्लू लाइट के लगातार संपर्क में रहने से आँखों की थकावट, ड्राई आई सिंड्रोम, नींद की समस्याएँ, और दृष्टि संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
डॉ. मेहरा ने बताया कि लगातार स्क्रीन देखने से आँखों में तनाव और थकावट का अनुभव हो सकता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक स्क्रीन समय के कारण आँखों में सूखापन और असुविधा हो सकती है, जिससे दृष्टि में धुंधलापन और जलन हो सकती है। ब्लू लाइट के प्रभाव से मेलाटोनिन हार्मोन का असंतुलन हो सकता है, जिससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और बच्चों को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता।
बच्चों की आँखों की सुरक्षा के लिए स्क्रीन समय सीमित करना, ब्लू लाइट फिल्टर का उपयोग, स्क्रीन की ब्राइटनेस को समायोजित करना, और बाहरी गतिविधियों को बढ़ावा देना आवश्यक है। बच्चों के स्क्रीन समय को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। उन्हें नियमित ब्रेक लेने के लिए प्रेरित करें ताकि उनकी आँखों को आराम मिल सके।
डिजिटल स्क्रीन से उत्पन्न ब्लू लाइट का बच्चों की आँखों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। डॉ. अभिषेक मेहरा के अनुसार, इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों के स्क्रीन उपयोग पर नजर रखनी चाहिए और आवश्यक निवारक उपाय अपनाने चाहिए। ऐसा करने से बच्चों की दृष्टि स्वास्थ्य को संरक्षित किया जा सकता है और उनके समग्र विकास में सहायता मिल सकती है।