रायपुर। छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी राज्य में स्थित “प्रयोग समाज सेवी संस्था” ग्रामीण नेतृत्व विकास में अपनी पहचान बनाने के लिए जानी जाती है। 1975 में स्थापित और 1982 में पंजीकृत इस संस्था का उद्देश्य महिलाओं को भूमि अधिकार और किसान पहचान दिलाना है। संस्था पिछले दो वर्षों से छत्तीसगढ़ के पांच जिलों – कोरिया, सूरजपुर, जशपुर, धमतरी और गरियाबंद में महिलाओं के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। जागरूकता अभियान, कानूनी प्रशिक्षण और पोस्टकार्ड अभियान जैसे कदम उठाकर, संस्था ने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया है।
महिलाओं के भूमि अधिकारों की स्थिति चिंताजनक
भारत को कृषि प्रधान देश और छत्तीसगढ़ को “धान का कटोरा” कहा जाता है। यहां 80% महिलाएं खेती-बाड़ी और वानिकी का काम करती हैं, लेकिन केवल 8% महिलाओं के पास ही भूमि का अधिकार है। इसके चलते 92% महिलाएं भूमिहीन हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। भूमि के अभाव में न केवल उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, बल्कि उनकी पहचान और सुरक्षा भी प्रभावित होती है।
पोस्टकार्ड अभियान से हक की आवाज़ बुलंद
महिला किसानों को उनके कानूनी अधिकार दिलाने के उद्देश्य से संस्था ने 11,619 पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजे। इन पोस्टकार्डों में महिलाओं के नाम पर जमीन दर्ज करने और उनकी आजीविका को सुरक्षित करने की मांग की गई। संस्था का उद्देश्य है कि महिलाओं को सशक्त बनाकर उनके भूमि और आजीविका अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए।
पुरुष प्रधान सोच और कमजोर प्रतिनिधित्व चुनौतीपूर्ण
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में महिलाओं का हिस्सा 48.46% है। बावजूद इसके, परिवार, समाज, राजनीति और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं को समानता नहीं मिली है। छत्तीसगढ़ में महिला सरपंचों की संख्या 5822 है, जो 50% से अधिक है, लेकिन इनमें से अधिकांश केवल नाम मात्र की सरपंच हैं। उनके कामकाज का नियंत्रण पुरुष करते हैं। इस पुरुष प्रधान सोच के कारण महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है।
महिला कृषक अधिकार कानून पर कार्रवाई की मांग
महिला किसानों के अधिकारों के लिए 2011 में संसद में डॉ. स्वामीनाथन ने चर्चा की थी, लेकिन महिला कृषक अधिकार कानून अब तक लागू नहीं हुआ। 80% कृषि कार्य करने वाली महिलाएं आज भी किसान का दर्जा पाने के लिए