रायपुर। नगरीय निकाय-पंचायत चुनाव 2025 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बार आम जनता को सीधे महापौर चुनने का अवसर मिलेगा, जो चुनाव को और भी रोचक बना देगा। पिछली बार 2019 के निकाय चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा महापौर के अप्रत्यक्ष चुनाव के फैसले के चलते निर्दलीय पार्षदों की भूमिका अहम हो गई थी।
निर्दलियों की अहमियत और कांग्रेस की बढ़त
2019 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महापौर चुनने के नियम में बदलाव करते हुए अप्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था लागू की थी। इस वजह से कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य दलों को निर्दलीय पार्षदों को अपने पक्ष में करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि, कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए अधिकतर निगमों में महापौर पद पर कब्जा जमाया था। विधानसभा चुनाव 2018 के परिणामों का असर निकाय चुनाव में भी दिखा, जहां कांग्रेस ने 151 निकायों के चुनाव में 1,283 वार्डों में जीत दर्ज की थी। भाजपा को 1,131 वार्ड मिले थे, जबकि 364 निर्दलीय पार्षद विजयी रहे थे।
इस बार जनता के हाथ में महापौर चुनने का अधिकार
2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बनी सरकार ने महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से कराने का फैसला लिया। इससे जनता को सीधे अपने महापौर का चयन करने का अधिकार मिल गया है। साय सरकार ने कांग्रेस सरकार द्वारा 2019 में लागू किए गए अप्रत्यक्ष चुनाव के नियम को पलटते हुए यह बदलाव किया।
चुनाव में बदले समीकरण
इस बार निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ हो रहे हैं, जिससे मुकाबला और दिलचस्प हो गया है। प्रदेश की 14 नगर निगमों में से रायपुर, जगदलपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, अंबिकापुर और चिरमिरी जैसे 10 निगमों में चुनाव होने जा रहे हैं। इस बार मतदान बैलेट पेपर के बजाय ईवीएम से होगा, जिससे प्रक्रिया तेज और पारदर्शी बनेगी।
पूर्ववर्ती चुनाव का अनुभव
2019 के चुनाव नवंबर-दिसंबर में आयोजित किए गए थे। उस दौरान नामांकन प्रक्रिया 30 नवंबर से शुरू हुई थी, और 21 दिसंबर को मतदान हुआ था। मतगणना 24 दिसंबर को पूरी कर परिणाम घोषित किए गए थे। तब कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर जीत हासिल की थी।
प्रत्यक्ष चुनाव का ऐतिहासिक संदर्भ
अविभाजित मध्य प्रदेश में 1999 तक महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता था। बाद में इसे अप्रत्यक्ष रूप से कराने का नियम लागू किया गया। 2019 में भूपेश बघेल सरकार ने इसे फिर से लागू किया, लेकिन अब मौजूदा भाजपा सरकार ने जनता के हाथों महापौर चुनने का अधिकार लौटाकर पुराने प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था बहाल कर दी है।
इस बार मुकाबला क्यों रोचक होगा?
चुनाव प्रक्रिया में हुए बदलाव, जनता का सीधा जुड़ाव और राजनीतिक दलों के बदलते समीकरण इसे और दिलचस्प बनाएंगे। रायपुर समेत 10 नगर निगमों में होने वाले चुनाव पर सभी की निगाहें टिकी हैं। आगामी परिणाम न केवल स्थानीय निकायों की सत्ता तय करेंगे, बल्कि प्रदेश की राजनीति की दिशा को भी प्रभावित कर सकते हैं।