‘तीन तलाक के तहत कितने मुस्लिम पुरुषों पर हुई FIR’, 3 साल की सजा के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर SC ने केंद्र से पूछा

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एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाले कानून को चुनौती पर सुप्रीम कोर्ट मार्च के आखिरी सप्ताह में सुनवाई करेगा. कोर्ट ने सरकार से इस कानून के तहत अब तक दर्ज मुकदमों का ब्यौरा मांगा. याचिकाओं में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक साथ 3 तलाक को अमान्य करार दे चुका है. सरकार को इसके लिए सजा का कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं थी.

22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था. इसके बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने का कानून बनाया. 2019 में संसद से पारित मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं 2019 से ही लंबित हैं.

इन याचिकाओं में खास तौर पर एक्ट की धारा 3 और 4 को चुनौती दी गई है. कहा गया है कि एक साथ 3 तलाक बोलने के लिए 3 साल की सजा बेहद सख्त कानून है. कानून महिलाओं को सुरक्षा देने के नाम पर बनाया गया है, लेकिन पति के जेल चले जाने से पत्नी की कोई मदद नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने मुस्लिम संगठनों की तरफ से पेश वकीलों ने कानून को भेदभाव भरा बताया.

मुस्लिम संगठनों की तरफ से वकील निजाम पाशा और वरिष्ठ वकील एम आर शमशाद ने दलील दी कि जब एक साथ 3 तलाक कानूनन अमान्य करार दिया गया है, तो इसके जरिए शादी रद्द नहीं हो सकती. ऐसे में एक साथ 3 तलाक बोलना ज्यादा से ज्यादा ब्याहता पत्नी को छोड़ने का मामला होगा. यह किसी भी समुदाय में दंडनीय अपराध नहीं है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू होता है. हर समुदाय के लिए कानून बनाए गए हैं. हम मामले को विस्तार से सुनेंगे.’

केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून का बचाव करते हुए कि महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए यह कानून बनाना जरूरी था. इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि कोई अपनी पत्नी से यह कह दे कि अगले पल से तुम मेरी पत्नी नहीं हो. यह आईपीसी की धारा 506 के तहत भी धमकी देने जैसा अपराध है.

इसके बाद एसजी तुषार मेहता ने साजिद सजनी लखनवी का एक शेर भी पढ़ा, ‘तलाक दे तो रहे हो, इताब ओ कहर के साथ, के मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेहर के साथ.’ सुनवाई के अंत मे चीफ जस्टिस ने कहा कि सरकार नए कानून के तहत दर्ज मुकदमों का ब्यौरा दे. यहां कोई भी महिला को इस तरह छोड़ देने का समर्थन नहीं कर रहा. सवाल इसके लिए जेल भेजने के कानून पर है. कोर्ट सभी पक्षों के जवाब को देख कर 26 मार्च को अगली सुनवाई करेगा.

सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने वाली अब तक कुल 12 याचिकाएं दाखिल हुई हैं. ये याचिकाएं समस्त केरल जमीअतुल उलेमा, मुस्लिम एडवोकेट एसोसिएशन, एदारा ए शरिया, जमीयत उलेमा ए हिंद समेत कई संगठनों और व्यक्तियों की तरफ से दाखिल हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भविष्य में इस मामले को किसी याचिकाकर्ता के नाम के बजाय “challenge to Muslim Women (Protection of Rights of Marriage) Amendment Act, 2019.” कहा जाएगा. हालांकि, इससे किसी भी याचिकाकर्ता के जिरह का अधिकार प्रभावित नहीं होगा. सभी लोग अपनी बात रख सकते हैं.

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