रायपुर । बांस का पौधा सबसे तेज गति से विकास करने व गृह निर्माण ,घर गृहस्थी, पूजा में उपयोग की सामग्रियों के साथ-साथ इसके बाय प्रोडक्ट से महत्वपूर्ण सौंदर्य प्रसाधन की चीजें बनती है । इसकी खेती से धन उपार्जन के साथ-साथ पर्यावरण और भू-जल संवर्धन का भी कार्य होता है यह बात राजधानी में आयोजित कार्यशाला में बिछिया, मंडला से आए बांस कृषि विशेषज्ञ सुदेश नामदेव ने कही इसी कड़ी में सोसायटी के सचिव एवं बैंबू एक्सपर्ट मोहन वर्ल्यानी ने मुख्यमंत्री बॉस विकास योजना की विस्तार से जानकारी दी एवं जो भी कृषक बांस लगाने की इच्छुक है उन्हें हर तरह से मदद की जाएगी। कार्यक्रम में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल , प्रकृति की ओर सोसाइटी के अध्यक्ष दलजीत बग्गा, सचिव मोहन वर्ल्यानी ,मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष पुरुषोत्तम सिंघानिया महामंत्री वार्ड पार्षद अमर बंसल, उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ जितेंद्र त्रिवेदी एवं डॉ विजय जैन प्रमुख रूप से उपस्थित थे । विशेष अतिथि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल ने कहा इस कार्यशाला के माध्यम से प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ने का बेहतर अवसर मिल रहा है उन्होंने कहा कि प्रकृति के स्वभाव को ग्लोबल वार्मिंग ने बदल दिया है । अब यह मानव जीवन और विश्व के सभी प्राणियों के लिए खतरा बनता चला जा रहा है। उन्होंने कहा प्रकृति की सेवा के लिए वृक्षारोपण पर जोर दिया जाना चाहिए । गौरीशंकर अग्रवाल ने यह भी कहा कि वृक्षारोपण सिर्फ सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं मानना चाहिए । सरकारी प्रयास से रोपित पौधों में से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते । वहीं जब नागरिक अपने प्रयासों से वृक्षारोपण करते हैं तो उनकी देखरेख में वह बेहतर ढंग से विकास करते हैं और परिणाम बहुत ही अच्छा मिलता है । प्रकृति की ओर सोसायटी के अध्यक्ष दलजीत सिंह बग्गा ने कहा हर घर हर छत में हरियाली फैलाना और उसके लिए चेतना जागृत करना हमारा प्रमुख उद्देश्य है ।
इस कार्यशाला में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि एवं उद्यानिकी विशेषज्ञ डॉ जितेंद्र त्रिवेदी एवं डॉ विजय जैन ने उद्यानिकी में रुचि रखने वाले उपस्थित जनों को उनके घर के छत और किचन गार्डन में महत्वपूर्ण पौधों को उगाने और उनकी देखभाल से संबंधित टिप्स दिए । उन्होंने प्रश्नोत्तरी के माध्यम से आमतौर पर पेड़ पौधे लगाने के दौरान आने वाली समस्याओं के समाधान पर भी प्रकाश डाला । मध्यप्रदेश के मंडला से आए अतिथि वक्ता बांस की खेती के विशेषज्ञ कृषक सुदेश नामदेव ने विस्तार से बांस की खेती की जानकारी दी उन्होंने बताया कि ब्रिटिश अधिनियम 1927 के अंतर्गत बांस को वृक्षारोपण के दायरे में रखा गया था और इसके कटाई परिवहन, विक्रय इत्यादि पर परेशानियां आती थी । अब देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के निर्णय से इसे घास की खेती में शामिल कर लिया गया है। अब बांस की खेती कृषकों के द्वारा आसानी से की जा रही है । तेजी से कृषक इस ओर अपना रुझान दिखा रहे हैं । उन्होंने कहा कि बांस विभिन्न प्रजातियों के होते हैं और इनकी खेती इसके उपयोग पर निर्भर करती है । बांस की खेती से भूजल संरक्षण को बढ़ावा मिलता है साथ ही वातावरण का तापमान भी इससे काफी कम होता है । उन्होंने कहा कि यह भ्रामक है कि सांप की झाड़ियों में सर्प रहते है । श्री नामदेव ने बताया कि सर्प शांति पसंद करते हैं ,वे अपनी केचुली छोड़ने के लिए उन्हें सघन कांटेदार झाड़ियों की जरूरत पड़ती है इसलिए वे प्राय बांस के झुरमुट का सहारा लेकर अपनी केचुली छोड़ देते हैं । जिसे देखकर यह मान लिया जाता है कि यहां पर सर्प निवास करते हैं । उन्होंने कहा कि बांस की खेती से आर्थिक लाभ होता है इसे लगाने के बाद प्रति एकड़ प्रतिवर्ष लगभग एक लाख रुपए की आय होती है बाद के वर्षों में यह आय बढ़ती चली जाती है । बांस का उपयोग भवन निर्माण फर्नीचर हाउसहोल्ड प्रोडक्ट के लिए होता है इसके बाद प्रोडक्ट चारकोल से वाटर फिल्टर एयर फिल्टर टी बैग विनेगर तार और सीएनजी तैयार होता है । श्री नामदेव ने बताया कि बांस की खेती के लिए राज्य और केंद्र सरकार कृषकों को सब्सिडी भी उपलब्ध कराती हैं ।