हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा निकाली जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ की यात्रा में शामिल होता है वह बहुत सौभाग्यशाली होता है और उसे इस रथ यात्रा में शामिल होने मात्र से सभी तीर्थों की यात्रा करने का पुण्य मिल जाता है. भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा का शुभारंभ आज यानी 1 जुलाई से शुरू हो गया है. यात्रा का समापन 12 जुलाई को होगा. आइए जानते हैं उड़ीसा के जगन्नाथपूरी में हर साल निकलने वाली इस यात्रा के पौराणिक महत्व के बारे में.
क्यों निकाली जाती है रथयात्रा
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी. जिसके बाद आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन भगवान जगन्नाथ जी और बलभद्र जी अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने ले गए थे. इस दौरान सबसे आगे भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष बीच में सुभद्रा जी का रथ देवदलन बीच में और सबसे पीछे बलभद्र जी का रथ तालध्वज था. इसी समय से हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा की शुरुआत की जाती है. इस यात्रा का कार्यक्रम 12 दिन तक चलता है
भगवान जग्गन्नाथ के यात्रा का महत्व
पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. उड़ीसा के जिस शहर से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है उसे श्रीजगन्नाथ पुरी, पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र आदि के नाम से जाना जाता है. विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा को गुण्डीचा यात्रा, पतितपावन यात्रा, जनकपुरी यात्रा, घोषयात्रा, नवदिवसीय यात्रा और दशावतार यात्रा के नाम से जाना जाता है.
जगन्नगा यात्रा से पूरी होती है हर मनोकामना
हर साल विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ यात्रा बहुत धूम-धाम से निकाली जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होता उसके जीवन के सारे दुःख कष्ट दूर होते हैं और उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इतना ही नहीं जो भक्त भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में सम्मिलत होता है उसे 100 यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है.