रायपुर, ग्लूकोमा के संबंध में छत्तीसगढ़ नेत्रालय के डायरेक्टर डॉ. अभिषेक मेहरा का कहना है कि नियमित जांच एवं समय रहते पहचान हो जाने से ग्लूकोमा को बढ़ने से रोका जा सकता है। ग्लूकोमा को काला मोतिया भी कहा जाता है, जो आँखों में ऑप्टिक नर्व के क्षतिग्रस्त होने जाने से विकसित होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 4 करोड़ लोगों को ग्लूकोमा है या इसके जोखिम के बीच जी रहे हैं।
डॉक्टर अभिषेक मेहरा कहते हैं, “अक्सर लोग हमारे पास तब आते हैं जब बहुत नुकसान हो चुका होता है। ग्लूकोमा से होने वाले नुकसान की पूर्ति नहीं की जा सकती है, लेकिन उसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। अगर समय रहते ग्लूकोमा का पता चल जाए तो उसका प्रबंधन सुगम होता है।”
अक्सर 40 वर्ष से अधिक उम्र में ही ग्लूकोमा विकसित होता है, हालांकि कुछ इससे कम उम्र के लोगों में भी ग्लूकोमा के मामले देखे गए हैं। ज्यादातर ग्लूकोमा का जोखिम उनको होता है जिसके परिवार में इसका इतिहास होता है या जिन्हें मधुमेह या उच्च रक्तचाप की समस्या है।
वयस्कों में अंधेपन का प्रमुख कारण ग्लूकोमा को कहा जाता है। कुछ प्रकार के ग्लूकोमा में, पीड़ित को लक्षणों का पता नहीं चलता। जब तक स्थिति गंभीर अवस्था में न पहुँच जाए, तब तक इस पर ध्यान नहीं जाता है। छत्तीसगढ़ नेत्रालय ग्लूकोमा की जांच के लिए आधुनिक सुविधाओं से युक्त है। साथ ही यहाँ अनुभवी विशेषज्ञों और स्टाफ द्वारा ग्लूकोमा की जांच की जाती है।
छत्तीसगढ़ नेत्रालय आँखों के इलाज के लिए प्रदेश का पुराना और विश्वसनीय नाम है, जहाँ आँखों के उपचार के लिये सारी ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध है। मानव सेवा की भावना के साथ नेत्र रोग के उपचार के लिये 4 दशकों से भी अधिक समय से छत्तीसगढ़ नेत्रालय कार्य कर रहा है। यहाँ पदस्थ चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों का उद्देश्य सदा ही गुणवत्तापूर्ण उपचार रहा है। यहाँ उपचार में पैसों की कमी कभी बाधा नहीं बनी। यह एक चैरिटेबल अस्पताल है जिसमें आज भी प्रतिदिन मात्र 50 रुपए के नाममात्र के ओपीडी शुल्क के साथ लोगों की कॉम्प्रेहेंसिव जांच की जाती है।
औसतन 200 मरीज प्रतिदिन अपनी आँखों के उपचार व जाँच के लिये छत्तीसगढ़ नेत्रालय में आते हैं। अपने संचालन की शुरुआत से अब तक अस्पताल के द्वारा 50 लाख से अधिक मरीजों का चेकअप, 3.5 लाख आँखों का ऑपरेशन और 20 हज़ार से अधिक नेत्र जांच शिविर का आयोजन किया जा चुका है।