कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री मनसुख मंडाविया को आज भेजे गए पत्र में कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने ऑनलाइन दवा बेचे जाने के मुद्दे पर केंद्रीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया है। यह सिफारिशें लगभग दो साल से अधिक समय पहले दी गई थी। कैट ने श्री मंडाविया से यह भी आग्रह किया है की इन सिफारिशों को सार्वजनिक भी किया जाए। कैट का मानना है कि जीओएम ने ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।
कैट के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जितेन्द्र दोशी ने बताया कि कैट ने श्री मंडाविया से इस मुद्दे का तत्काल संज्ञान लेकर देश भर के केमिस्ट व्यापारियों को इन ऑनलाइन फार्मेसी कंपनियों के आतंक से बचाने की मांग की जो ड्रग एंड कॉस्मेटिक क़ानून के स्थायी प्रावधानों का घोर उल्लंघन करते हुए ऑनलाइन के जरिये दवा बेच रही हैं। दोनों व्यापारी नेताओं ने श्री मंडाविया का ध्यान दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के उल्लंघन पर ड्रग कंट्रोलर ऑफ़ इंडिया द्वारा 20 से अधिक कंपनियों को भेजे गए कारण बताओ नोटिस की ओर आकर्षित किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12.12.2018 को अपने एक आदेश के एक आदेश में कहा कि लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर निषेधाज्ञा होगी, लेकिन उस आदेश की तारीख से लेकर पिछले वर्षों में ई-फार्मेसी कंपनियां आदेश की अवहेलना करते हुए दवाइया बेच रही हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
श्री पारवानी और श्री दोशी ने आगे कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक ऐसे क्षेत्र में जिसका उपभोक्ता स्वास्थ्य और सुरक्षा पर इतना सीधा प्रभाव पड़ता है, यह अकल्पनीय है कि बिना लाइसेंस वाले ऑनलाइन ऑपरेटर को बिना किसी जिम्मेदारी के अपना व्यापार चला रहे हैं।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की ऑनलाइन दवा बेचने से देश में नक़ली दवाओं का कारोबार फल फूल रहा है जो लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। ऑनलाइन के ज़रिए अनेक प्रकार के फ़र्ज़ी लोगों द्वारा दवा बेचे जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऑनलाइन फ़ार्मेसी से देश भर के केमिस्टों का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है जो वर्षों से ईमानदारी से दवा बीच कर देश के लोगों की सेवा कर रहे है। कोविड के दौरान देश के दवा विक्रेताओं द्वारा की गई सेवाएँ उल्लेखनीय हैं।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा की जो भी ई फ़ार्मेसी कम्पनियाँ ड्रग एवं कास्मेटिक्स एक्ट का पालन नहीं कर रहीं उनके ख़लिफ़ सख़्त से सख़्त कदम उठाये जाएँ।दवा जैसी वस्तुएँ जो मानव जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है को बिना क़ानून की पालना किए बेचा जाना को क़तई जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है ।ये सभी ई फ़ार्मेसी कम्पनियाँ बिना लाइसेंस के दवाएँ बीच रही हैं जो सीधे रूप क़ानून का स्पष्ट उल्लंघन है । क़ानून के अंतर्गत स्पष्ट प्रावधान है की किसी भी दवा को बेचने, भंडारण करने, वितरण करने अथवा प्रदर्शित करने के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक है और बिना लाइसेंस इसमें से कुछ भी गतिविधि नहीं की जा सकती है।
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा की ड्रग क़ानून के नियम 61, 64 और 65 के साथ पठित अधिनियम की धारा 18 (सी) के अंतर्गत दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री या प्रदर्शन के लिए एक वैध लाइसेंस की आवश्यकता होती है। इसलिए, बिना लाइसेंस के इन ई-फ़ार्मा प्लेटफ़ॉर्म पर इन दवाओं की प्रदर्शनी और बिक्री की पेशकश अधिनियम और नियमों का सीधा उल्लंघन है।
श्री पारवानी एवं श्री दोशी ने कहा कि इनमें से कई कम्पनियाँ विदेशी नियंत्रित हैं और इसलिए इनको लाइसेंस नहीं मिल सकता । यदि इन विदेशी कंपनियों को लाइसेंस दिया गया तो यह मल्टी ब्रांड खुदरा क्षेत्र या इन्वेंट्री आधारित ई-कॉमर्स में मौजूदा एफडीआई नीति का उल्लंघन होगा।