रायपुर (छत्तीसगढ़)। संसदीय सचिव एवं विधायक ने आज बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की जयंती के शुभअवसर पर उनके बारे में देशवासियों से कहा कि डॉक्टर बीआर आंबेडकर अन्याय के भयावह अंधकार के खिलाफ़ एकाकी संघर्ष का नाम है। उनके नेतृत्व में भारतीय संविधान के उस ग्रंथ की रचना की गई जो पूरे विश्व में और किसी देश में नहीं है। डॉक्टर बी आर आंबेडकर को संविधान का जनक कहा जाता है और इसी संविधान के चलते ही भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूत माना जाता रहा है। गणराज्य की स्थापना के 73 साल बाद भी आज सामाजिक और आर्थिक ग़ैरबराबरी को ख़त्म करने का एजेंडा पूरा नहीं हो सका है। असमानता पहले से ज्यादा विकट हुई है। पूर्वोत्तर, कश्मीर, और मध्यभारत के बड़े इलाके असंतोष के कारण हिंसाग्रस्त हैं। जाति अपने विकराल रूप में मौजूद है। बाबा साहब की कामना थी कि संवैधानिक संस्थाएं वंचित लोगों के लिए अवसरों का रास्ता खोले और उन्हें लोकतंत्र में हिस्सेदार बनाए। राष्ट्रीय एकता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। जब भी बाबा साहब की बात आती है आरक्षण को लेकर चर्चा होती है। जबकि बाबा की सोच आरक्षण के मक़सद को लेकर यह था कि वंचित जातियों को महसूस हो कि देश में मौजूद अवसरों में उनका भी हिस्सा है और देश चलाने में उनका भी योगदान है। यह करोड़ों की आबादी वाले भारत में वंचित जाति समूहों के हर सदस्य को नौकरी देने के लिए नहीं है। इसलिए संविधान अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, महिलाओं सबका ख्याल रखता हुआ नज़र आता है। जिसे समझना होगा।
विकास उपाध्याय ने यह भी कहा कि आम्बेडकर ने कहा था “छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।“ आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। सन 1927 तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और “छुआछूत“ को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी, 1950 को जब संविधान को स्वीकार कर लिया गया तो बाबा साहब ने उसी दिन कहा था कि हम सबसे अच्छा संविधान लिख सकते हैं, लेकिन उसकी कामयाबी आखि़रकार उन लोगों पर निर्भर करेगी, जो देश को चलाएंगे। मेरा मानना है भारतीय लोकतंत्र को और सुंदर होना चाहिए था।
विधायक विकास उपाध्याय पश्चिम विधानसभा अंतर्गत पंचशील बुद्ध विहार बुद्ध चौक रामनगर में आयोजित डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की जयंती समारोह सहित आंबेडकर मंगल भवन, रोटरी नगर, रेलवे स्टेशन चौंक, चांदनी चौंक, शुक्रवारी बाजार, कोटा एवं डॉ. भीमराव आंबेडकर चौक में आयोजित रैली समारोह व जयंती समारोह में शामिल हुए।